
फिल्म का नाम: धड़क 2
रिलीज डेट: 1 अगस्त 2025
निर्देशक: शाज़िया इक़बाल
मुख्य कलाकार: सिद्धांत चतुर्वेदी, तृप्ति डिमरी
शैली: रोमांटिक ड्रामा
भाषा: हिंदी
अवधि: 2 घंटे 21 मिनट
रेटिंग: 4/5
लेखक: [as blogger]
भूमिका
2018 में आई फिल्म ‘धड़क’ ने जहां युवा दर्शकों को आकर्षित किया, वहीं उसे सामाजिक गहराई की कमी के लिए आलोचना भी मिली। सात साल बाद ‘धड़क 2’ एक नई टीम और नई सोच के साथ आती है। इस बार न कहानी पुरानी है, न उसका प्रस्तुतिकरण। फिल्म की आत्मा सच्ची, बोल्ड और पूरी तरह से मौलिक है।
‘धड़क 2’ सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि यह पहचान, संघर्ष और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज़ है।
कहानी
मुंबई की पृष्ठभूमि में बसी इस कहानी के केंद्र में हैं अयान कुरैशी और सायरा मेहता। अयान एक युवा मुस्लिम थिएटर अभिनेता है, जो अपने साधारण जीवन और बड़े सपनों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है। दूसरी ओर सायरा एक पारसी लड़की है, जो अपने परंपरागत परिवार से निकलकर खुद को खोज रही है।
थिएटर के एक वर्कशॉप में दोनों की मुलाकात होती है और यह धीरे-धीरे एक गहरे रिश्ते में बदल जाती है। लेकिन उनका रिश्ता धर्म, वर्ग और समाज की कठोर सीमाओं से टकराता है। यह कहानी उसी टकराव, प्रेम और आत्म-खोज की यात्रा है।
अभिनय
सिद्धांत चतुर्वेदी ने अयान के किरदार को बेहद गहराई और सच्चाई के साथ निभाया है। उनकी आंखें और हावभाव उस असहायता को व्यक्त करते हैं जो एक संवेदनशील युवा अपने सपनों और समाज के बीच महसूस करता है।
तृप्ति डिमरी का अभिनय सायरा के रूप में बेहतरीन है। उन्होंने सायरा को एक स्वतंत्र, भावनात्मक और सशक्त युवती के रूप में पेश किया है। उनकी संवाद अदायगी से अधिक, उनकी खामोशियां बोलती हैं।
दोनों की केमिस्ट्री बिलकुल वास्तविक लगती है। कोई ओवरएक्टिंग नहीं, कोई बनावटीपन नहीं – सिर्फ सच्चा, कच्चा और प्रभावशाली अभिनय।
निर्देशन
निर्देशक शाज़िया इक़बाल ने इस फिल्म के साथ अपना डेब्यू किया है और उन्होंने बहुत ही नपा-तुला, गहराई से भरा निर्देशन किया है। उन्होंने कहानी को नाटकीय नहीं बनाया, बल्कि उसे यथार्थ से जोड़ा है।
शाज़िया बड़े मुद्दों को छोटे दृश्यों और साधारण लम्हों में पिरोती हैं। वह पात्रों को सांस लेने का, सोचने का, और दर्शकों से जुड़ने का अवसर देती हैं। यह फिल्म तेज गति वाली नहीं है, लेकिन इसका हर पल कुछ कहता है।
संगीत
अमित त्रिवेदी का संगीत फिल्म की आत्मा है। न गाने जबरन डाले गए हैं और न ही कोई आइटम नंबर है। गाने कहानी के साथ बहते हैं और पात्रों की भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
‘बिखरे लम्हे’, ‘रास्ते तेरे’, और ‘शहर में तन्हाई’ जैसे गीत फिल्म के मूड को पूरी तरह पकड़ते हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक भी हल्का है लेकिन प्रभावशाली।
सिनेमैटोग्राफी
कैमरामैन अविनाश अरुण ने मुंबई को नए अंदाज में दिखाया है – न रंगीन सपनों का शहर, न सिर्फ भीड़ से भरा महानगर – बल्कि एक जीवंत, संवेदनशील, और सांस लेने वाला किरदार।
फिल्म के लो-लाइट फ्रेम्स, थिएटर की गहराइयां, बारिश में भीगे दृश्य – सब कुछ इमोशन्स से भरे हैं।
पटकथा और संवाद
फिल्म की पटकथा मजबूत और केंद्रित है। संवाद गहरे और अर्थपूर्ण हैं, लेकिन कहीं भी बनावटी नहीं लगते। फिल्म कई जगह खामोशी से बात करती है, जो आज के सिनेमा में कम देखने को मिलता है।
एक संवाद जो दिल में रह जाता है:
“हमारा नाम साथ नहीं चलता, लेकिन यादों में हम हमेशा साथ होते हैं।”
फिल्म की खूबियां
- अभिनय बेहद सशक्त और वास्तविक है
- विषय गंभीर लेकिन संवेदनशीलता से पेश किया गया
- संगीत और सिनेमैटोग्राफी कहानी के साथ चलते हैं
- इंटरफेथ रिलेशनशिप को बिना पक्षपात के दिखाया गया
- निर्देशन सधा हुआ और यथार्थपरक है
कमज़ोर पक्ष
- गति धीमी होने के कारण कुछ दर्शकों को फिल्म लंबी लग सकती है
- साइड किरदारों को और गहराई दी जा सकती थी
- क्लाइमेक्स अपेक्षाओं से अलग हो सकता है, जो सभी को पसंद न आए
निष्कर्ष
धड़क 2 उन फिल्मों में से है जो दिल में उतरती हैं और दिमाग में गूंजती हैं। यह फिल्म किसी परीकथा की तरह नहीं है – यह उस सच्चाई की तरह है जिससे आज के युवा जूझते हैं। प्यार करना आसान है, लेकिन उसे निभाना और दुनिया के सामने टिकाना एक संघर्ष है।
धड़क 2 इस संघर्ष को बेहद ईमानदारी से सामने लाती है।
किसे देखनी चाहिए
- जो दर्शक परिपक्व और गंभीर सिनेमा पसंद करते हैं
- जो इंटरफेथ या सामाजिक विषयों पर बनी फिल्में देखना चाहते हैं
- जिन्हें मुख्यधारा के रोमांस से हटकर कुछ असली और अर्थपूर्ण देखना है